Tum chandan hum pani lyrics प्रभु जी तुम चंदन हम पानी – प्रस्तुत गीत भक्ति कालीन संत कवि रैदास जी की है। इसमें ईश्वर की भक्ति को विभिन्न रूपों में जोड़कर सिद्ध करने की सात्विक कोशिश की गई है।
भक्ति काल में हिंदू धर्म का ह्रास हो रहा था , विदेशी अत्याचारी बलात धर्म परिवर्तन करा रहे थे। ऐसे समय में इन कवियों ने मजबूती से धर्म का प्रचार किया और धर्म की रक्षा के लिए अनेकों भजन की रचना की। आज यह भजन जनमानस में लोकप्रिय है जिसे भक्तजन सदैव भक्ति रस में डूबे भजन गाते हैं-
Tum chandan hum pani lyrics
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी, जानकि अंग अंग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन, बन हम मोरा जैसे चितवत चंद्र चाकोरा, प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। ।
प्रभु जी तुम मोती हम धागा जैसे सोहने मिलत सुहागा। प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। ।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती जाकी ज्योति जले दिन-राती। प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। ।
प्रभु जी, तुम स्वामी, हम दासा, एसी भक्ति करै रैदासा। प्रभु जी तुम चंदन हम पानी।
रचनाकार – भक्तिकालीन कवि रैदास
स्वर – अनूप जलोटा , अनुराधा पौडवाल
श्रेणी – कृष्ण भजन , राम भजन
गीत का अर्थ व्याख्या सहित –
रैदास जी कहते हैं हे मेरे प्रभु ! हे आराध्य ! तुम चंदन हो और मैं पानी हूं। जिस प्रकार पानी में चंदन घुल कर उसके महत्व को बढ़ाता है। वह पानी भी चंदन की भांति पवित्र हो जाता है और उसकी सुगंध पानी में सर्वत्र व्याप्त होती है। तुम उसी प्रकार हो।
दूसरी पंक्ति में कहते हैं – हे ईश्वर! तुम मेघ हो जिस प्रकार मोर , मेघ को देखकर नाचता है , खुशी मनाता है। मैं भी उसी प्रकार मोर की भांति नाच रहा हूं। हे प्रभु तुम चंद्रमा हो और मैं चकोर। जिस प्रकार चकोर चांद को देखकर आनंदित होता है , मैं भी तुम्हें देखकर आनंदित होता हूं। अपनी यह कृपा मुझ पर सदैव बनाए रखिए। मैं ऐसी भक्ति आपसे चाहता हूं।
तीसरी पंक्ति में कहते हैं – हे प्रभु! तुम मोती हो और मैं धागा , एक सामान्य और छोटे से धागे का मान आपके द्वारा ही बढ़ पाना संभव है। ऐसे छोटे से चीज को भी तुम किसी सुहाग की निशानी तक बना देते हो। जिसे कोई अपने से दूर नहीं करना चाहता। इसी प्रकार तुम मुझे प्रेम करते रहो और मुझ जैसे छोटे व्यक्ति पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखो।
हे प्रभु तुम दीपक हो अर्थात तुम संसार हो , और मैं उसमें एक जीव की भांति दिन – रात जल रहा हूं। मेरा जलना भी किसी दूसरे को सकारात्मक विचार और प्रकाश तथा सुख दे रहा है। तो मेरा ऐसा जलना आपके सौभाग्य से प्राप्त हुआ है।
रैदास प्रभु की भक्ति दास्य से भाव से करते हैं। वह अपने प्रभु को स्वामी मानते हैं , जो केवल रैदास के ही स्वामी नहीं अपितु संपूर्ण जगत के स्वामी हैं। ऐसी भक्ति रैदास को प्राप्त हुई है।